The Journey Begins

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भारत के पास अपनी प्राचीन स्थापत्य कला की विरासत एक अजूबे से कम नहीं है । हजारों भव्य मंदिर, महल, किल्ले बावड़ी इत्यादि के रूप मे हमारी भव्य संस्कृति की गवाही देते हुए खड़े है । सोमनाथ, द्वारिका, खजुराहो, देलवाडा, राणकपुर, चितोड़गढ़, पाटन की रानी की बावड़ी, अडालज की स्टेपवेल, अजंता-इलोरा, होयशाला के मंदिर, कोणार्क एवं मोढेरा के सूर्यमंदिर इत्यादि सदीओ से खड़े अनगिनत स्थापत्यो की भव्य विरासत हमारे पास है । अधिकतर विदेशी भी हमारी संस्कृति और स्थापत्य को देखने ही भारत की मुलाकात लेते है । भारतीय स्थापत्य कला मूलत: हमारे वास्तु शिल्प शास्त्र के सिद्धान्तों पर आधारित है । आज लोग वास्तु शिल्प शास्त्र के निर्माण कला के सिद्धांतों को भूलने लगे है और उसे सिर्फ संपनता प्राप्त करने का साधन मानने लगे है । आज के इस सोसियल मीडिया युग मे लोगों की रुचि भारतीय स्थापत्य कला की और बढ़ी है । इस पर बहोत कुछ लिखा जा रहा है किन्तु प्राचीन शिल्प शास्त्र के अभ्यास के बिना और इस विषय की मूलत: जानकारी के बगैर इस विषय पर कुछ भी लिखना ठीक नहीं । प्राचीन भारतीय स्थापत्य और अर्वाचीन स्थापत्य मे बहोत अंतर है, इस का बिना ज्ञान प्राप्त कीए आज के मॉर्डन आर्किटेक भी मंदिर निर्माण करने लगे है । आज भी सोमपुरा ब्राह्मण शिल्पी अपनी पीढ़ी दर पीढ़ी  देश – विदेश मे भारतीय स्थापत्य कला एवं शिल्प शास्त्र के नियमों के आधीन भव्य मंदिरों का निर्माण कर ही रहे है ।

मे, बलभद्र उपाध्याय खुद एक सोमपुरा होने के साथ मेरी कंपनी “सोमपुरा स्थापत्य” के नाम से मंदिर निर्माण का कार्य करता हु । मेरे इस विषय के २० साल के अनुभव एवं इस के प्राचीन ग्रंथ (अपराजित पृच्छा, समारंगण सूत्रधार, मयमतं, दीपर्णव, क्षिरार्णव, प्रासाद मंडन, शिल्परत्नाकर इत्यादि कई) के अभ्यास से इस विषय मे रुचि रखने वाले जन सामान्य को शिल्प शास्त्र का सही परिचय हो, एवम् हमारे प्राचीन मंदिरों के स्थापत्य – और उन की शुद्ध निर्माण शैलीओ के बारे मे अवगत हो सके इस द्रष्टीकोण से यह ब्लॉग के द्वारा मेरा एक नम्र प्रयास है ।  

Vitan
Vitan (Ghummat) of a Temple